पल्कों पे बिटा के रखते थे तुम
चाहता था तुम्हें जिंदगी से बढकर
पाया था तुमको क्वाबों में उतरकर
आज उसी पलकों के तले आँसुओं का आना जाना हैं
करीब जो था कल सभ से, आज वहीं बेगाना हैं
आज भी खुश्बू तेरी हवाओं पे झूमती हैं
कानों में कोई बात कहें जाय तो कभी होटों को छूमती है
कह गई सब कुछ खामोशी बाते वो अन कहीं
रह गई हैं साँसे मगर, जिंदा तो हम नहीं
मालूम है तुम साथ नहीं
फिर भी आँखें तरस थी हैं
कभी मासूम सा हँसी देता हैं तो कभी झूमक
छुबती है हर वो फल
जो साथ तेरी बिताई है
थाम सा गया आज फिर से
धडकन जो तेरी याद आयी है।
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